भोर के भीगे अधरों पर....चीज़ें वही रहती हैं - अभ्यस्त मन और आंखों से परे का आयाम, मन की सहजता के क्षणों में जब दिख जाता है तो वही कविता हो जाता है. शायरी के लिए जलाल, जमाल और कमाल की बात कही जाती रही है, देखी, सुनी और महसूस की जाती रही है.