जय जिनेन्द्र,
आज के इस युग में श्रावक द्वारा जिनवाणी को हर स्थान पर साथ में ले कर चलना संभव नहीं हैं तथा उचित भी नहीं हैं । परन्तु कुछ कारणवश जिनवाणी को साथ में रखना भी आवश्यक हैं। अतः इस आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए जैन तीर्थंकर (Jain Tirthankara)